चुनावों में मुद्दे हजार हों लेकिन आज भी हमारे देश में वोट धर्म और जातिगत आधार पर डाले जाते हैं. ये वैसा ही कड़वा सच है जैसा कि नेताओं का नोट देकर वोट खरीदना. लेकिन एक मामले में धर्म-जातिगत गणित की बात अब बदलती जा रही है. देश में 18 करोड़ से ज्यादा मुसलमान हैं, जो कि देश की आबादी का करीब 14 फीसदी हैं. जाहिर है इतनी बड़ी तादाद में मुस्लिमों की आबादी चुनावी मौसम में नेताओं के लिए किसी नेमत से कम नहीं है. इसी कारण हर राजनीतिक पार्टी की मुस्लिम वोट बैंक पर हमेशा नजर जमी रहती है, उस पर कांग्रेस का तो ये परंपरागत वोट बैंक माना जाता रहा है. इसके अलावा कई क्षेत्रीय दल तो ऐसे हैं जिनके अस्तित्व का आधार ही मुस्लिम वोट हैं. इस सबके बाद भी उम्मीदवार चुनते समय इस धर्म के उम्मीदवारों को पार्टियों खास तवज्जो नहीं देती हैं. ना जाने क्यों पार्टियों को ये कैंडिडेट मुस्लिम प्रभाव वाले क्षेत्रों में भी सीट जिताऊ नहींं लगते.
अहम हैं मुस्लिम वोट
देश की 545 सीटों में से 2 को छोड़कर जिन 543 सीटों पर मतदान होता है, उनमें से करीब 200 निर्वाचन क्षेत्र ऐसे हैं जहां मुस्लिम वोटों की हिस्सेदारी 10 फीसदी से अधिक है. इतना ही नहीं इनमें से करीब 70 सीटें तो ऐसी हैं जहां 20 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोट हैं और वे चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. अब ये आंकडे़ पढ़कर तो पहला ख्याल मन में यही आता है कि जाहिर है, फिर इन सीटों पर चुनाव भी ज्यादातर मुस्लिम उम्मीदवार ही लड़ते होंगे. लेकिन ऐसा नहीं है.
मुस्लिम आबादी के अनुपात में मुस्लिम सांसदों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व तो पहले से ही कम है, उस पर भी ये पिछले दो लोकसभा चुनावों से तो और भी कम होता जा रहा है. हालांकि इस बीच एक बार 1957 में भी मुस्लिम सांसद बहुत कम रहे. आजादी के बाद से अब तक के लोकसभा चुनावों के नतीजों को देखें तो लोकसभा में मुस्लिम सांसदों का औसत 28 से अधिक नहीं रहा, जो कि लोकसभा की 543 सीटों का 5.1 फीसदी ही है.
| चुनावी साल | मुस्लिम सांसदों की संख्या | प्रतिशत |
1 | 1952 | 11 | 2 |
2 | 1957 | 19 | 4 |
3 | 1962 | 20 | 4 |
4 | 1967 | 25 | 5 |
5 | 1971 | 28 | 6 |
6 | 1977 | 34 | 7 |
7 | 1980 | 49 | 10 |
8 | 1984 | 42 | 8 |
9 | 1989 | 27 | 6 |
10 | 1991 | 25 | 5 |
11 | 1996 | 29 | 6 |
12 | 1998 | 28 | 6 |
13 | 1999 | 31 | 6 |
14 | 2004 | 34 | 7 |
15 | 2009 | 30 | 6 |
16 | 2014 | 22 | 4 |
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16वीं लोकसभा 2014 में केवल 22 मुस्लिम सांसद जीते। जबकि मुस्लिम वोटर कुल आबादी का 10.5 प्रतिशत थे लेकिन उनका सदन में प्रतिनिध्तव 4.2 पर्सेंट ही रहा. सबसे ज्यादा बंगाल से आठ मुस्लिम सांसद जीते थे और ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल ने 4 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था और वे चारों जीते भी थे. हैरानी की बात ये रही कि उत्तर प्रदेश से एक भी मुस्लिम सांसद नहीं चुना गया. जबकि मुस्लिम वोट बैंक के लिहाज से ये प्रदेश सबसे हॉट माना जाता है.
मुस्लिम उम्मीदवारों के वोट भी घटे
चौंकाने वाली बात ये भी है कि मुस्लिम उम्मीदवारों को मिलने वाले वोटों की संख्या भी कम होती जा रही है और इससे उनके जीतने की गुंजाइश भी कम हो जाती हैं. यदि वोट जातिगत आधार पर दिए जाते हैं तो फिर इन उम्मीदवारों को मिलने वाले वोट क्यों घट रह हैं, ये बड़ा सवाल है और इस पर राजनीतिक पार्टियों साथ ही मुस्लिम समुदाय को भी रिसर्च करनी चाहिए. कि आखिर क्यों मुस्लिम उम्मीदवारों को उनके ही समुदाय के लोग प्रतिनिधित्व नहीं सौंपना चाहते हैं.
इस बार के चुनावों में अब तक दो बड़ी पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस ने जितने उम्मीदवार घोषित किए हैं, उनमें भी मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या बहुत कम है. कांग्रेस के 377 उम्मीदवारों में से 29 मुस्लिम उम्मीदवारों को मौका दिया है, वहीं बीजेपी ने 348 उम्मीदवारों में से केवल 4 मुस्लिम कैंडिडेट्स पर भरोसा जताया है.