अचानक से हाईप्रोफाइल सीट बनी वायनाड का नाम अब लगभग हर शहर के लोग जानने लगे हैं (कुछ दिन बाद शायद गांव-गांव तक भी लोग ये नाम जानने लगेंगे). केरल की 20 लोकसभा सीटों में से एक वायनाड ने न केवल केरल बल्कि बाकी दक्षिण भारतीय राज्यों की पॉलीटिक्स को भी गरमा दिया है. माना जा रहा है कि राहुल गांधी ने इस सीट को चुनकर पूरे दक्षिण भारत को साधने की कोशिश की है वहीं बीजेपी की दक्षिण भारत में कर्नाटक छोड़कर स्थिति कहीं भी बेहतर तो छोडि़ए, अच्छी भी नहीं कही जा सकती. वायनाड में तो बीजेपी को रेस से बाहर कहना ही सही होगा.
लेकिन राहुल गांधी ने इतनी आसान सीट चुनकर विरोधियों को बोलने का एक मौका तो दे ही दिया है. कम से कम प्रधानमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे नेता से इतनी उम्मीद तो की जाती है कि वो ऐसी सीट चुनते जहां उसकी विरोधी पार्टी का कम से कम प्रत्याशी तो होता. खैर, अब वायनाड से बीजेपी ने एनडीए के सहयोगी दल भारत धर्म जन सेना के प्रमुख तुषार वेल्लापल्ली को मैदान में उतारा है. वो भी ऐसे प्रत्याशी हैं, जिनका वायनाड में कोई आधार ही नहीं है.
भारत धर्म जन सेना, एक ऐसी जाति आधारित नई पार्टी है जिसका ना तो कोई विधायक है ना सांसद. लोकसभा चुनावों में तो ये पार्टी पहली बार ही हिस्सा ले रही है (किस्मत अच्छी है कि राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने के कारण इस पार्टी को पहले ही लोकसभा चुनावों से खासी प्रसिद्धि भी मिल जाएगी ). अब वायनाड में प्रत्याशी उतारने के लिए बीजेपी के पास इसके अलावा और इससे अच्छा कोई दूसरा विकल्प था भी नहीं. क्योंकि केरल में भारतीय जनता पार्टी की साथी और कोई पार्टी नहीं है. इसके उलट कांग्रेस का यहां अच्छा खासा वर्चस्व है. मुस्लिम और क्रिश्चियन मतदाता बड़ी संख्या में हैं और इनमें से ज्यादातर कांग्रेस का वोट बैंक माने जाते हैं. पिछले दो लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का ही प्रत्याशी यहां से जीता है.
यहां राहुल गांधी के खिलाफ एक ही पार्टी बचती है, जो उनकी मुख्य विरोधी होगी, वो है सुधाकर रेड्डी की पार्टी सीपीआई. जो कि सत्ताधारी दल लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट का हिस्सा है. सीपीआई के जनरल सेक्रेटरी एस.सुधाकर रेड्डी ने साफ कह दिया है कि वायनाड से अपने प्रत्याशी का नाम वापस लेने का तो सवाल ही नहीं उठता है. साथ ही कहा कि लेफ्ट फ्रंट राहुल गांधी को हराने के लिए सारे प्रयास करेगा. बल्कि उन्होंने तो ये तक कह डाला कि राहुल गांधी को यदि दक्षिण भारत की किसी सीट से चुनाव लड़ना ही था तो कर्नाटक की कोई सीट चुन लेते, जहां बीजेपी मजबूत है. लेकिन ऐसी पार्टी (सीपीआई) जो कि बीजेपी के खिलाफ है, उसी के खिलाफ राहुल गांधी का चुनाव लड़ना शोभा नहीं देता, जबकि वो अपोजिशन की सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष हैं. यानि की बीजेपी के दो विरोधी ही, आपस में चुनाव लड़ रहे हैं.
रेड्डी कहते हैं कि अन्य सीटों पर सीपीआई या लेफ्ट फ्रंट के उम्मीदवार के खिलाफ कांग्रेस का प्रत्याशी उतारना अलग बात है लेकिन खुद राहुल गांधी का सीपीआई के खिलाफ चुनाव लड़ना बात है. भले ही राहुल गांधी यहां से चुनाव जीत जाएं लेकिन बाकी बीजेपी विरोधी दलों और उन मतदाताओं को क्या संदेश जाएगा जो मोदी या बीजेपी के अलावा किसी और को देश की सत्ता सौंपना चाहते हैं. इसके अलावा ये भी साबित हो गया कि भले ही कांग्रेस कितने ही दावे कर रही हो कि मोदी के खिलाफ सारे विरोधी दल एकजुट हैं और वो मोदी को हराने के लिए प्रतिबद्ध हैं लेकिन गठबंधन और महागठबंधन दोनों के स्तर पर फिलहाल तो वो पिछड़ती ही नजर आ रही है.