दिल्ली की जहरीली हवा का जिम्मेदार कौन: ‘किसान’ या ‘दिल्लीवाले’ ?

ऐसा नहीं है कि ‘प्रदूषण’ भारत के अन्य राज्यों में नहीं है लेकिन इतना नहीं है जितना दिल्ली में है |

दिल्ली की जहरीली हवा का जिम्मेदार कौन: ‘किसान’ या ‘दिल्लीवाले’ ?

‘दिल्ली’ देश की राजधानी है और दुनियाभर की राजनीति इसी शहर में होती है. यहाँ हर बात पर राजनीति करने वालों की कमी नहीं है. ऐसा इसलिए क्यों कि दिल्ली में आजकल एक मुद्दा फिर तूल पकड़ रहा है वो है ‘प्रदूषण’. ये मुद्दा ऐसा है जिसकी शुरुआत भी यहाँ के रहने वाले लोगों से होती है और जब प्रदूषण इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि लोग अपनी ही गलतियों के शिकार हो जाते हैं तो फिर एक और खुराफात सूझती है लोगों को कि कैसे भी अपनी गलती दूसरे के सिर मढ़ दें | ये बात इसलिए कही जा रही है क्यों कि दिल्ली एक बार फिर प्रदूषण से परेशान है और इस परेशानी के जिम्मेदार भी दिल्लीवासी ही हैं लेकिन जैसा कि अक्सर मनुष्यों में एक बात हमेशा से देखी गई है कि वो अपनी गलती मानता नहीं है | ऐसा नहीं है कि ‘प्रदूषण’ भारत के अन्य राज्यों में नहीं है लेकिन इतना नहीं है जितना दिल्ली में है | अब इस मुद्दे पर राजनीति होने लगी है जैसा कि पहले ही कह चुका हूँ दिल्ली राजनीति का केंद है | दिल्ली में प्रदूषण के जिम्मेदार दिल्लीवाले ही हैं लेकिन राजनीति किसानों की पराली पर होने लगी है | पराली के मुद्दे पर हरियाणा व पंजाब आमने-सामने हैं। पंजाब के सीएम भगवंत मान ने कहा कि पराली से प्रदूषण के लिए सिर्फ पंजाब जिम्मेदार नहीं है। हरियाणा में भी पराली जल रही है। पंजाब के मुकाबले हरियाणा के शहर ज्यादा प्रदूषित हैं। केंद्र की भाजपा सरकार जानबूझ कर पंजाब के किसानों को टारगेट कर रही है। भगवंत मान के इस बयान पर हरियाणा के सीएम मनोहर लाल ने पलटवार किया है। मनोहर लाल ने कहा कि पराली जलाने का हल निकालने के बजाय पंजाब के मुख्यमंत्री आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति कर रहे हैं। वह किसानों को भड़का रहे हैं। उन्हें केंद्र सरकार पर अनर्गल आरोप लगाने के बजाय हरियाणा की तरह किसानों को राहत देकर पराली प्रबंधन करना चाहिए।

 

 

ये तो हो गई पंजाब और हरियाणा की बात क्यों कि ये दौनों राज्य दिल्ली के करीबी हैं. अब बात करते हैं दिल्ली वालों की, दिल्ली  के मुख्यमंत्री ने क्या किया प्रदूषण को लेकर ये जानना भी जरुरी है | अरविंद केजरीवाल सरकार ने दिल्लीवासियों को वायु प्रदूषण से निपटने के लिए नया प्लान तैयार किया है. दिल्ली में सर्दियां शुरू होते ही हवा की क्वालिटी खराब हो जाती है. इससे निपटने के लिए केजरीवाल सरकार ने सर्दियां शुरु होने से पहले ही नए एक्शन प्लान की घोषणा की है. नए एक्शन प्लान के मुताबिक,  पराली गलाने के लिए बायो डीकम्पोजर का इस्तेमाल किया जाएगा. इतना ही नहीं पुराने पेट्रोल-डीजल वाहनों पर सख्ती की जाएगी. साथ ही पटाखों पर भी बैन रहेगा.  इसके साथ ही केजरीवाल ने ऐलान किया है कि दिल्ली सरकार 233 एंटी स्मॉग गन और 150 मोबाइल एंटी स्मॉग गन इंस्टॉल की जाएगी.

 

 

अब सवाल ये उठता है कि इतना सब कुछ सरकार कर रही है फिर भी हालात और ज्यादा क्यों बिगड़ते जा रहे हैं, चलिए आसान भाषा में आपको समझाते हैं |

 

 

दिल्ली में इस मौसम में प्रदूषण के तीन बड़े कारण हैं. सबसे बड़ी वजह है यहां की प्राइवेट गाड़ियां. दूसरी वजह है आस-पास के इलाकों में किसानों द्वारा खेतों में जलाए जाने वाले खूंट, जिसे इस इलाके में पराली और कुछ इलाकों में पुआल कहा जाता है. तीसरी वजह है इस समय फोड़े जाने वाले पटाखे. लेकिन दिल्ली का मीडिया आपको सिर्फ किसानों की पराली ही दिखा रहा है साथ ही और मुख्यमंत्रियों के बीच की नोंकझोंक, अब आपको ये भी जानना चाहिए कि बाकि बाकी दो तिहाई प्रदूषण का क्या हो रहा है ? पराली जलाने का प्रदूषण तो साल में सिर्फ 15 दिनों का है, जब खरीफ, मुख्य रूप से धान, की फसल कट चुकी होती है और रबी की फसल के लिए खेत तैयार किए जाते हैं. फिर ऐसा क्या है कि दिल्ली की हवा साल भर गंदी रहती है? दिल्ली का प्रदूषण कोई मौसमी समस्या तो है नहीं. जब किसान पराली नहीं जलाते हैं तब दिल्ली की हवा को प्रदूषित कौन करता है. इसमें कोई राज़ नहीं है. आइआइटी कानपुर और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की एक संयुक्त रिपोर्ट में इस स्थिति का बहुत सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है। यही रिपोर्ट दिल्ली सरकार की एग्रीगेटर पालिसी ड्राफ्ट का आधार बनी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के पीएम 2.5 में 28 प्रतिशत हिस्सेदारी परिवहन क्षेत्र की ही है। दिल्ली की हवा में 80 प्रतिशत तक नाइट्रोजन आक्साइड और कार्बन मोनोक्साइड की वजह भी वाहनों का धुआं है। इसमें 37 प्रतिशत योगदान दोपहिया जबकि 43 प्रतिशत कारों का है। ट्रकों की 10 और तिपहिया वाहनों की हिस्सेदारी 5 प्रतिशत तक है। जमीनी स्तर पर भी 36 प्रतिशत धुआं वाहनों का है। इसी नाइट्रोजन आक्साइड के कारण नाइट्रेट और ओजोन का निर्माण होता है । यह रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली देश में निजी वाहनों का भी हब बन रही है ।

 

 

और एक और बड़ा कारण पटाखे

राजधानी दिल्ली में प्रतिबंध के बावजूद दिल्लीवालों ने दिवाली के मौके पर देर रात तक आतिशबाजी की। पटाखे फोड़े जाने की अगली सुबह दिल्ली में प्रदूषण का लेवल काफी बढ़ गया था. इस साल उत्सव के मद्देनज़र और एनसीआर के नोएडा, गाजियाबाद और गुरुग्राम में पटाखों पर कोई प्रतिबंध नहीं होने के कारण लगभग 39 फीसदी परिवारों ने दिल्ली-एनसीआर में पटाखे जलाये, जबकि दिल्ली में ग्रीन या इको-फ्रेंडली पटाखों के अलावा किसी और तरह के पटाखे बेचने पर पाबंदी है. लेकिन दिल्ली के लोग कहां मानने वाले? उन्होंने आसपास के शहरों से पटाखे लाकर दिवाली मना ली. हालांकि इंडियन कौंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ने इको फ्रैंडली पटाखे बनाए हैं. लेकिन दिल्ली में इनकी नाम मात्र की ही बिक्री हो रही है.  दिल्ली सरकार ने हाल ही में घोषणा की थी कि शहर में पटाखों का निर्माण, भंडारण या बिक्री करने पर विस्फोटक अधिनियम की धारा 9बी के तहत तीन साल की जेल और 5,000 रुपये तक के जुर्माने की सजा हो सकती है. जैसा कि साफ़ दिखाई दे रहा है कि दिल्ली में प्रदूषण दो ही प्रमुख कारण हैं पहला पटाखे जिनका दिवाली से कोई सम्बन्ध नहीं है भारत में  पटाखों की पहली फैक्ट्री ही 1830 के आसपास कोलकाता में लगी. और दूसरा दिल्लीवालों की प्राइवेट गाड़ियाँ |

 

 

इस विषय में वरिष्ठ पत्रकार के शब्दों में कहूँ तो “दिल्ली की कोठियों और अपार्टमेंट में एक और ही दुनिया बसती है. अगर उनकी सप्लाई का पानी खराब है तो वे बोतल का पानी पी लेंगे. अगर बिजली जाने से समस्या है तो वे डीजल जेनरेटर सेट लगा लेंगे. अगर सुरक्षा की जरूरत हो तो वे इक्विपमेंट लगाने के साथ ही प्राइवेट सिक्युरिटी गार्ड रख लेंगे. जीवन की हर समस्या का उनके पास प्राइवेट समाधान है, जो बाजार में पैसे चुकाने पर उपलब्ध है. लेकिन हवा एक ऐसी चीज है, जो उन्हें बाकी लोगों के बराबर खड़ा कर देती है. बेशक एयर प्यूरीफायर आदि के जरिए इस समस्या का भी समाधान खोजने की कोशिश हो रही है. लेकिन उनकी सीमाएं हैं. हवा साफ हो, इसके लिए कारों की संख्या कम करना, एसी कम चलाना, जेनरेटर का इस्तेमाल कम करना जैसे उपाय किए जा सकते हैं. लेकिन इनका बोझ उठाने को ये वर्ग तैयार नहीं है. इसलिए वे चाहते हैं कि प्रदूषण कम करने का बोझ किसानों के कंधों पर डाल दिया जाए. पटाखे फोड़ने की मस्ती से अलग, किसानों के लिए पराली जलाना उनकी मजबूरी है. पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश भारत के वो इलाके हैं, जहां हरित क्रांति सफल रही. इसकी वजह से इस इलाके के खेतों में साल में तीन फसलें ली जाती हैं. इसका पराली जलाए जाने से सीधा संबंध है. चूंकि रबी की फसल कटने के फौरन बाद गेहूं बोने का समय आ जाता है, और इन दोनों के बीच ज्यादा मोहलत नहीं होती, इसलिए किसान धान की फसल के खेत में बचे हुए हिस्सों को जला देते हैं, ताकि उनके खेत अगली फसल के लिए तैयार हो जाएं.’ कुल मिलाकर दिल्ली को साफ हवा देने का दायित्व किसानों का है और दिल्ली वाले इस बीच दिल्ली को हवा को प्रदूषित करते रहेंगे. ये पुराने जमाने की वर्ण व्यवस्था जैसा मामला है जो शक्ल बदलकर आज भी जारी है. इसमें कुछ लोग उपभोग करते हैं और बाकी लोग सेवा करते हैं. अब कुछ लोग प्रदूषण फैलाते हैं और बाकी लोगों से कहा जाता है कि वे हवा साफ रखें. ऐसा न करने वालों के लिए दंड का प्रावधान है’’. ये उनके शब्द थे |

( आपकी क्या राय है इस मुद्दे पर हमें जरूर बताएं )

 

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