अख़बार में छपने से पहले जैसे कोई रिपोर्टर अपनी खबर, संपादक से पास करवाता हैं, वैसे ही फिल्म निदेशक अब अपनी कहानी की पूरी स्क्रिप्ट पहले सरकार को दिखाएंगे और मंज़ूर होने पर ही उन्हें शूटिंग की इज़ाज़त होगी। धारा 370 हटाए जाने के दो साल बाद जब 5 अगस्त को, जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने केंद्र शासित प्रदेश के लिए एक नई 'फिल्म नीति' की घोषणा की, तो नीति में कुछ शर्ते ऐसी ही थीं।
फ़िल्म नीति नई पर नीयत पुरानी
श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में आयोजित सिन्हा की शो में राजकुमार हिरानी और आमिर खान शामिल थे जिन्होंने 2008 में लद्दाख में 3 इडियट्स की शूटिंग की थी।
शो खत्म होने के बाद उप राज्यपाल सिन्हा ने अपने ट्विटर पर नीति के बारे में अगले दिन कुछ बिंदु लोगों से साझा किये। उन्होंने लिखा, 'यह नीति जम्मू कश्मीर को मनोरंजन उद्योग के लिए सबसे पसंदीदा डेस्टिनेशन में बदल देगा,' उन्होंने लिखा आगे लिखा, ' सिनेमैटोग्राफर की खुशी के लिए शूटिंग के सुनहरे दिनों को ये नीति अब वापस लाएगी।'
सिन्हा के शो मौजूद बॉलीवुड के मशहूर अदाकार आमिर खान ने इस नीति के लिए धन्यवाद व्यक्त करते हुए कहा, “मैं मनोज सिन्हा को बधाई देना चाहता हूं और इस फिल्म नीति के लिए उनका भी आभारी हूं। यह फिल्म उद्योग के लिए खुशी का क्षण है और हमें कई सुविधाएं मिलेंगी और इससे यहां फिल्मों की शूटिंग आसान हो जाएगी।मुझे लगता है कि यह कश्मीर के युवाओं के लिए रचनात्मक क्षेत्र में प्रवेश करने और इसके बारे में जानने का ये एक शानदार अवसर होगा। साथ ही, जैसा कि हम अन्य राज्यों में देखते हैं, हम कश्मीरी फिल्में भी देखना चाहेंगे। हम इस उद्योग को जम्मू-कश्मीर से बाहर निकलते देखना चाहते हैं।”
पहले स्क्रिप्ट जमा करें फिर शूटिंग की सोचें
शूटिंग की इज़ाज़त के लिए सरकार को स्क्रिप्ट दिखाकर स्वीकृति लेना बॉलीवुड के निदेशक और कलाकारों को रास नहीं आया। फ़िल्मी दुनिया के एक निदेशक ने देश 24x7 को बताया की इससे पहले शूटिंग जब सैनिक ठिकानो या सरहद पर की जाती थी तो रक्षा मंत्रालय को स्क्रिप्ट दिखाई जाती थी। सेना अपने साजो सामान का इस्तेमाल तभी करनी देती थी जब स्क्रिप्ट उसे ठीक करे। सुरक्षा के लिहाज से ये न्यायसंगत था। लेकिन शूटिंग अगर झील, पहाड़ या सार्वजनिक स्थलों पर की जा रही है तो उसके लिए स्क्रिप्ट दिखाने का मतलब है फिल्म बनने से पहले जैसे सेंसर बोर्ड का सर्टिफिकेट लेना हो।
उधर यूपी सरकार ने भी वेबसाइट 'फिल्म बंधु, उत्तर प्रदेश' पर इसी तरह की नीति की घोषणा की। साइट में फिल्म निर्माताओं के लिए शूटिंग की मंजूरी और सब्सिडी की मांग करने के लिए चेकलिस्ट हैं। पहले वाले के 10 अंक हैं, दूसरे के 12. लेकिन दोनों एक मानदंड पर सहमत हैं - 'संवाद के साथ फिल्म की पटकथा और पटकथा' की आवश्यकता। पहले यह तभी लागू होता था जब फिल्म निर्माता सब्सिडी मांग रहा हो।
जम्मू और कश्मीर फिल्म की विकास परिषद की वेबसाइट का कहना है कि नीति 'कई लोगों के लिए आजीविका के अवसर पैदा करेगी'। एक अतिरिक्त आकर्षण भी है: 'अनुमोदित फिल्म निर्माताओं' के लिए मुफ्त सुरक्षा व्यवस्था।
जेकेएफडीसी की एक समिति का उद्देश्य 'फिल्म नीति के उद्देश्यों को प्राप्त करना' है।
स्क्रिप्ट को मंज़ूरी सरकार द्वारा बनाया पैनल देगा
सिन्हा ने ट्वीट किया, 'मैं दुनिया भर के फिल्म निर्माताओं को जम्मू-कश्मीर आने के लिए आमंत्रित करता हूं और अपने लेंस के माध्यम से इसकी प्राचीन सुंदरता को कैप्चर करता हूं।' कई मुख्यधारा के मीडिया आउटलेट्स ने इस खबर को फिल्म उद्योग के लिए एक प्रगतिशील बदलाव बताते हुए इसे कवर किया।
पर मनोज सिन्हा जिस फिल्म नीति की खुली तारीफ़ कर रहे हैं उसका एक दूसरा पक्ष भी है। मिसाल के तौर पर शूटिंग की मंजूरी पाने के लिए, एक फिल्म निर्माता को 'विस्तृत स्क्रिप्ट और सारांश' जमा करना होगा। वेबसाइट स्पष्ट करती है कि 'स्क्रिप्ट का मूल्यांकन जम्मू और कश्मीर फिल्म सेल के केंद्र शासित प्रदेश द्वारा गठित पैनल के एक विशेषज्ञ द्वारा किया जाएगा'।
'असाधारण मामलों' में, एक निर्देशक को 'भारत/दुनिया में कहीं भी रिलीज होने से पहले फिल्म सेल के प्रतिनिधि को' पूरी फिल्म दिखाने की आवश्यकता हो सकती है 'यह सुनिश्चित करने के लिए कि फिल्म को मूल्यांकन की गई स्क्रिप्ट के अनुसार शूट किया गया है' और यह कि इसमें 'विषय पर एक सही और संतुलित परिप्रेक्ष्य की प्रस्तुति के दृष्टिकोण से आपत्तिजनक कुछ भी नहीं है'।
अन्य भारतीय राज्यों की तुलना में जम्मू और कश्मीर में शूटिंग हमेशा मुश्किल रही है, लेकिन निर्देशकों को अनुमोदन के लिए अपनी स्क्रिप्ट जमा करने की आवश्यकता नहीं थी। उदाहरण के लिए, याहान (2005) को फिल्माते समय, शूजीत सरकार को सेना और स्थानीय अधिकारियों से केवल अनुमति लेनी पड़ी।
स्क्रिप्ट में राष्ट्र विरोधी कंटेंट की होगी जाँच
राज़ी (2018) बनाने वाली मेघना गुलज़ार ने पुष्टि की, “राज़ी की स्क्रिप्ट को शूटिंग से पहले केवल एडीजीपीआई सेना मुख्यालय द्वारा अनुमोदित किया गया था। हमारे पास उस समय जम्मू-कश्मीर राज्य के लिए ऐसा कोई प्रोटोकॉल नहीं था।” गुलजार के शब्दों से संकेत मिलता है कि 2018 में राज्य फिल्म निर्माण की प्रक्रिया में शामिल नहीं हुआ।
उत्तर प्रदेश में भी ऐसा ही हुआ था। बनारस और लखनऊ में मुल्क बनाने वाले अनुभव सिन्हा ने कहा कि उनके अनुभव में, शूटिंग के समय या उससे पहले कोई स्क्रिप्ट जमा नहीं करनी पड़ती थी, 'सिवाय तब जब आप सब्सिडी के लिए आवेदन करते हैं।'
जम्मू कश्मीर के सूचना और जनसंपर्क विभाग के एक फिल्म अधिकारी ने अपनी बात ज्यादा साफ़ अहा “हमें यह देखना होगा कि कोई भी इन दिनों देशद्रोही [राष्ट्र-विरोधी] काम नहीं कर रहा है। यानि स्क्रिप्ट का कंटेंट ऐसा हो जिस पर सरकार को एतराज न हो ।' ज़ाहिर अब स्क्रिप्ट तैयार करते वक़्त फिल्म निर्माताओं और निदेशकों को सरकार से शूटिंग की मंज़ूरी लेने के लिए कंटेंट का ख्याल रखना होगा।