न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चंद्रचूड़ ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के बुधवार को प्रधान न्यायाधीश (CJI) के पद की शपथ ली. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में देश के 50वें सीजेआई न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट से बेहद अच्छी तरह वाकिफ हैं, जहां उनके पिता लगभग सात साल और चार महीने तक प्रधान न्यायाधीश रहे थे, जो शीर्ष अदालत के इतिहास में किसी सीजेआई का सबसे लंबा कार्यकाल रहा है. डी वाई चंद्रचूड़ के पिता 22 फरवरी 1978 से 11 जुलाई 1985 तक सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश रहे.
चंद्रचूड़ की शिक्षा और करियर का सफ़र
डी वाई चंद्रचूड़ ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफंस कॉलेज और लॉ डिपार्टमेंट से पढ़ाई की. उसके बाद उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी का रुख किया, जहाँ से 1983 में एलएलएम किया. 1986 में जूरीडिकल साइंस (Juridical Sciences) में डॉक्टरेट की उपाधि लेने के बाद उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में एक वकील के रूप में प्रैक्टिस की.
इसके बाद उन्होंने 1998 से 2000 तक भारत के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के रूप में भी कार्य किया. 29 मार्च, 2000 को उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट का एडिशनल जज नियुक्त किया गया.
इसके बाद डी वाई चंद्रचूड़ को 31 अक्टूबर 2013 को इलाहाबाद हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस और 13 मई 2016 को सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में नियुक्त किया गया.
स्वाभाव के धनी हैं चंद्रचूड़
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस चंद्रचूड़ के काम के बारे में बात करते हुए उनके साथ बॉम्बे हाईकोर्ट में काम कर चुके एक वकील ने कहा कि उन्हें हमेशा अपने जूनियर वकीलों से भी उसी तरह बात करते हुए देखा गया, जिस तरह सीनियर वकीलों से बात करते थे. कोई ऐसा जूनियर वकील नहीं मिलेगा जो ये बताए कि जस्टिस चंद्रचूड़ उन पर कभी चिल्लाए हों.
बोल्ड जजमेंट के लिए जाने जाते हैं
डीवाई चंद्रचूड़ ने दो बार अपने पिता जस्टिस वीवाई चंद्रचूड़ के फैसलों को पलटा भी है. निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित करने वाला सुप्रीम कोर्ट का नौ जजों संविधान पीठ का फैसला एक अनोखे कारण के लिए ऐतिहासिक था, क्योंकि जस्टिल डी वाई चंद्रचूड़ ने आपातकाल के दौरान दिए गए प्रसिद्ध ADM जबलपुर मामले में अपने पिता वाईवी चंद्रचूड़ द्वारा लिखे गए फैसले को पलट कर दिया था.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने पिता का जो दूसरा फैसला पलटा, वह एडल्टरी लॉ पर था. 2018 में, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ उस पीठ का हिस्सा थे, जिसने सर्वसम्मति से उस कानून को रद्द कर दिया जो एडल्टरी को एक व्यक्ति द्वारा दूसरे के खिलाफ किए गए अपराध के रूप में मानता है. उस आदेश के साथ, एडल्टरी अब अपराध नहीं है, केवल तलाक का आधार है. 1985 में जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ ने एडल्टरी कानून को संवैधानिक रूप से वैध करार दिया था.
जस्टिस चंद्रचूड़ से देश को उम्मीदें इसलिए भी हैं क्यों कि आज देश में न्याय व्यवस्था पर सवाल उठने लगे हैं जनता को ऐसा लगता है कि सारी संस्थाएं मोदी सरकार ने अपने कब्जे में कर रखी हैं कोर्पोरेट से लेकर मीडिया और ब्यूरोक्रेसी से लेकर मनी कण्ट्रोल सब पर इस सरकार ने कब्ज़ा कर रखा है ऐसे में चंद्रचूड़ एक उम्मीद की किरण हैं क्यों कि वो एक ऐसे शख्स हैं जो सरकार के सामने झुकते नहीं हैं | इस सरकार ने चंद्रचूड़ को CJI न बनाने के कई प्रयास किये ऐसा लोग कहते हैं लेकिन सारे प्रयास विफल हुए | हम आपको बता दें आगामी दिनों में शिंदे और उद्धव ठाकरे वाला मामला भी चंद्रचूड़ ही देखेंगे और अब देखना ये होगा कि वो इस मामले में किस पक्ष के खिलाफ फैसला लेते हैं ये बहुत ही दिलचस्प होने वाला है |
अगर हम पूर्व CJI रंजन गोगोई की बात करें तो उनके कार्यकाल में लिए गए फैसले लोगों ने सवाल उठाये थे और वो विवादों में भी घिरे रहे थे चाहे वो राफेल डील का मामला हो या फिर उन पर लगे सेक्सुअल हरेस्मेंट का माला हो, कुल मिलाकर हम ये कह सकते हैं कि चंद्रचूड़ एक ऐसे शख्स हैं जो साफ़ छवि के साहसी और ईमानदार हैं | सत्ता के दबाव में आकर निर्णय नहीं लेते हैं चाहे फिर वो कोविड-19 का मामला हो आधार कार्ड से जुड़ा मामला हो या फिर RTI का मामला हो उन्होंने जनता के हित में ही फैसले लिए हैं | इन सभी फैसलों से जाहिर होता है कि उनके आगामी फैसले देश में एक नई उम्मीद की किरण लेकर आएंगे |
दो साल का होगा डी वाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ 10 नवंबर 2024 तक दो साल के लिए इस पद पर रहेंगे. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश 65 साल की उम्र में अवकाशग्रहण करते हैं. डी वाई चंद्रचूड़ से पहले उदय उमेश ललित सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई थे, उन्होंने 11 अक्टूबर को ही डी वाई चंद्रचूड़ को अपना उत्तराधिकारी बनाए जाने की सिफारिश की थी.
एक नजर उनके लिए गए अहम फैसलों पर
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का जन्म 11 नवंबर 1959 को हुआ था. 13 मई 2016 को उन्होंने शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीश बनाए गए थे. वह कई संविधान पीठ और कई ऐतिहासिक फैसले देने वाली उच्चतम न्यायालय की पीठों का हिस्सा रहे हैं.
29 मार्च 2000 से 31 अक्टूबर 2013 तक वे बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश थे. उसके बाद उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को जून 1998 में बंबई उच्च न्यायालय द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया था और वह उसी वर्ष अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किए गए.
दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में बीए ऑनर्स करने के उन्होंने कैंपस लॉ सेंटर, दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी किया और अमेरिका के हार्वर्ड लॉ स्कूल से एलएलएम और न्यायिक विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की.
इनमें अयोध्या भूमि विवाद, आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने, आधार योजना की वैधता से जुड़े मामले, सबरीमला मुद्दा, सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने, भारतीय नौसेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने जैसे कई फैसले शामिल हैं.