कैप्टेन और सिद्धू की जंग में उलझी कांग्रेस अब छत्तीसगढ़ में पंजाब की गलती दोहराना नहीं चाहती। कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व ये समझने की कोशिश कर रहा है कि आखिर रायपुर में दो-तिहाई बहुमत की बघेल सरकार को पार्टी के भीतर से चुनौती देने वाले किसका भला करना चाहते हैं ? कांग्रेस का या फिर भाजपा का ?
दरअसल देश के राजनैतिक मानचित्र पर कांग्रेस कहीं प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में है तो वे प्रदेश छत्तीसगढ़ ही है। लेकिन जहाँ कांग्रेस को मोदी-शाह भी हिला नहीं सकते हैं वहीँ पार्टी को भीतर से कमज़ोर करने की कोशिशें हो रही है। कांग्रेस में राजघराने से जुडी एक ताकतवर लॉबी चाहती है कि ढाई साल बाद अब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कुर्सी राजा टीएस सिंह देव को सौंपी जाये। लेकिन दस जनपथ के कई वफादार मानते है कि कांग्रेस के ओबीसी चेहरे भूपेश बघेल को मौजूदा दौर में कुर्सी से हटाकर एक राजा को 'आदिवासी राज्य' का ताज पहनना पार्टी के लिए आत्मघाती होगा।
छत्तीसगढ़ में विद्याचरण शुक्ल सरीखे कई बड़े कांग्रेसी नेताओं की सामूहिक हत्या के बाद जिस तरह भूपेश बघेल ने पार्टी को बीजेपी के सामने खड़ा किया, उससे कांग्रेस ने, न सिर्फ रायपुर में मजबूत सरकार बनाई बल्कि आदिवासियों में भी ज़बरदस्त समर्थन हासिल किया। लेकिन राजनैतिक दांव में माहिर बघेल पिछले कुछ दिनों से अपने कैबिनेट मंत्री टीएस सिंह देव के एक के बाद एक चलाए गए तीरों से आहत दिख रहे है। राज घराने के कई नेता और दिल्ली दरबार के कुछ कथित नज़दीकियों की शह पर देव इस कोशिश में लगे हैं कि बघेल को कमज़ोर करके वे अगले ढाई साल के लिए खुद सीएम बन जाये।
रोटेशन सीएम की बात आधिकारिक नहीं थी
छत्तीसगढ़ में यूँ तो रोटेशन के आधार पर मौजूदा सरकार में मुख्यमंत्री की कुर्सी बदलने की बात आधिकारिक रूप से कभी नहीं कही गयी लेकिन टीएस सिंहदेव के समर्थक मानते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में बघेल और देव के रोटेशन की चर्चा की गयी थी। सच तो ये है कि जब 2018 में कांग्रेस राज्य में भारी बहुमत के साथ सत्ता में आई, तो पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष भूपेश बघेल, वरिष्ठ नेता चरण दास महंत, ताम्रध्वज साहू और टीएस सिंह देव के नाम संभावित सीएम उम्मीदवारों के तौर पर लिए गये थे। आखिरकार कांग्रेस आलाकमान ने कई दौर की बैठकों के बाद बघेल को तब सीएम पद के लिए उपयुक्त माना।
रायपुर में मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद कुछ सियासी तबकों में साझा नेतृत्व यानि रोटेशन सीएम की कहानियां सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर खूब चलायी गयी। दिलचस्प बात ये है कि रोटेशन सीएम की बात आधिकारिक तौर पर न देव ने खुद कभी कही और न ही कांग्रेस के किसी वरिष्ठ नेता ने सार्वजनिक मंच पर ऐसा कहा।पर जैसे जैसे वक़्त बिता और बघेल अपनी योजनाओं से लोकप्रिय होते गए, देव के समर्थक सोशल मीडिया पर ढाई-ढाई साल की साझा नेतृत्व यानि रोटेशन सीएम के फार्मूले की बात प्रचारित करते रहे। ज़ाहिर है इस नरेटिव से बघेल और देव के बीच में कुछ दूरियां भी बनी और दोनों के समर्थक भी एक दूसरे पर कटाक्ष करने से बाज़ नहीं आये। इस मौके का लाभ राज घराने से जुड़े उन नेताओं ने उठाया जो एक राजा को छत्तीसगढ़ का ताज पहनाकर राजशाही के ठाठ पुनर्जीवित करना चाहते थे।
खेल के पीछे राजघराने से जुड़े कुछ नेता
इस कश्मकश के बीच जब मीडिया ने सीएम बघेल से नेतृत्व में बदलाव और दिल्ली में साझा लीडरशिप के फार्मूले के बारे में पूछा, तो उन्होंने इस तरह की किसी भी बातचीत से नकार किया और कहा कि 'गठबंधन सरकार के साथ राज्यों में ऐसी व्यवस्था होती है'। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव से भी कई मौकों पर ऐसे सवाल पूछे गए तो उनकी प्रतिक्रिया काफी हद तक खारिज करने वाली रही है, जिसमें उन्होंने कहा कि 'उनके और सीएम बघेल के बीच कोई समस्या नहीं है'।
इस बीच, छत्तीसगढ़ के पार्टी प्रभारी पीएल पुनिया ने भी कई मौकों पर कहा है कि राज्य के लिए ऐसा कोई 'ढाई साल का फॉर्मूला' नहीं था। सूत्रों की माने तो टीएस सिंह देव के पीछे खड़ी मजबूत लॉबी चाहती है कि अगर बघेल को संगठन में लाया जाये तो देव का सीएम बनने का रास्ता खुद साफ़ हो जायेगा।
गुटबाज़ी से होता है नुकसान, आलाकमान चिंतित
सूत्रों के मुताबिक, रायपुर में जारी इस शीत युद्ध और स्थानीय मीडिया में रोटेशन सीएम की चर्चा को देखकर कांग्रेस पार्टी सभी पहलुओं को बेहद गौर से देख रही है। यह मुद्दा ऐसे समय में उछाला गया है जब पार्टी ने पंजाब राज्य में बड़े पैमाने पर भीतरघात से हुए नुकसान को देखा है। जिस तरह नवजोत सिंह सिद्धू और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच तलवारें खिंची उससे कांग्रेस को पंजाब में मुश्किल वक़्त का सामना करना पड़ा। सरकार पर कोई आंच न आये इसलिए सिद्धू को पार्टी में जिम्मेदारी दी गयी।
इस बीच, राजस्थान के मामले में भी पार्टी आलाकमान ने बेहद सोच समझ के अब कदम बढ़ाये हैं। दस जनपथ सूत्रों ने बताया कि मोदी-शाह की जोड़ी राजस्थान में मध्य प्रदेश का खेल कराना चाहती थी इसलिए सबसे बड़े चुनौती जयपुर में गेहलोत सरकार को बचाना था और ये भी तय करना था कि सचिन पायलट कांग्रेस के अगले ज्योतिरादित्य सिंधिया न बने। हरियाणा और कर्नाटक जैसे राज्यों के मामले भी पार्टी के लिए चिंता का विषय हैं, जहा एक दूसरे गुट अपनी महत्वकांक्षाओं के चलते पार्टी के हितों को नुकसान पहुंचा सकते है। हरियाणा में आलाकमान अब ये देख रहा है कि ज़मीनी सियासत में कौन सा गुट अधिक मजबूत है।जो जमीन पर ज्यादा मजबूत है उसे ही आलाकमान अब आगे करेगा, नहीं तो भाजपा किसी भी स्तर पर पार्टी को तोड़ने का खेल कर सकती है।
पार्टी के सूत्र बताते हैं कि फ़िलहाल छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री बदलने की कोई योजना नहीं है।न ही कोई ऐसा फार्मूला तय किया गया था जिसके आधार पर ढाई साल बाद बघेल की कुर्सी किसी और को दी जाये। सूत्रों के मुताबिक, बघेल की आक्रामक राजनीति, उनकी ओबीसी पृष्ठभूमि और पार्टी का राज्य में मजबूत आधार उनके पक्ष में जाता है जिसके चलते दस जनपथ नहीं चाहता है कि एक स्थिर सरकार को बिना किसी अहम वजह के खुद अस्थिर किया जाये।