लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव सर्वाधिक प्रतिष्ठित बनने जा रहे हैं। क्योंकि किसान आंदोलन, महंगाई, ब्राह्मणों की तथाकथित नाराजगी जैसे मुद्दों के बीच भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए किसी भी बेमेल गठबंधन तक की विपक्षी नेताओं की राजनीति ने निपटना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती होंगे। पार्टी के रणनीतिकार इसीलिए किसी भी चूक की गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहते है, चाहे वह जातिगत समीकरण साधना हों, सरकार के कामकाज गिनाना हों या पूर्व में सरकार में रह चुके विपक्षी दलों की नाकामयाबियों का बखान करना हो, प्रत्येक मुद्दे पर पार्टी सोचसमझ कर रणनीति तैयार कर रही है।
पूर्व राज्यपाल व पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के निधन के कारण करीब 1 सप्ताह विलंब होने के बाद पार्टी अब पूरी तरह से चुनावी मोड में आना चाहती है। गत दिवस चुनाव प्रभारियों के एलान के साथ इसकी तेज शुरुआत हो चुकी है। भाजपा को यह अच्छी तरह से एहसास है कि उसकी सत्ता वापसी न हो सके, इसके लिए विरोधी दल किसी भी समझौते तक जा सकते हैं। पिछले चुनाव की अगर बात करें तो औपचारिकता में भी दोस्ती न निभाने वाले सपा-बसपा तक भाजपा को हराने के लिए एक मंच पर आ गए थे। ये एकता चुनाव के पहले से लेकर चुनाव के बाद तक दिख सकती है। ऐसी स्थिति में भाजपा को मालूम है किउसे खुद की ताकत से ही बहुमत हासिल कर सरकार बनानी है। इसीलिए पार्टी एक सोची-समझी रणनीति के तहत इस चुनावी समर में उतरना चाहती है।
जातिगत गोटियां बैठाना हो या फिर विकास की गाथा सुनानी हो किसी भी मोर्चे पर भाजपा चूक नहीं करना चाहती है। इसकी झलक उत्तर प्रदेश के लिए घोषित चुनावी टीम में दिखती है, प्रभारी की कमान धर्मेंद्र प्रधान को सौंपने का अर्थ ओबीसी कैटेगरी को साधना है। धर्मेंद्र प्रधान ओबीसी कैटेगरी से आते हैं ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग के वोट उत्तर प्रदेश के चुनाव में एक बड़ी भूमिका निभाने वाले हैं, पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को बड़ी संख्या में ओबीसी वोट प्राप्त हुए थे। इसी प्रकार ब्राह्मण समाज हो या ठाकुर बिरादरी, एससी/एसटी हो सभी को चुनाव टीम में जगह दी गयी है। यहां तक कि मुस्लिम महिलाओं को पार्टी से जोड़ने का आह्वान खुद योगी आदित्यनाथ महिला मोर्चे से कर चुके हैं।
चुनाव जीतने के लिए एक बड़ा कार्य होता है कि वोटर बूथ तक कैसे आए, क्योंकि समर्थक होना और समर्थन में वोट डालना दो अलग बातें होती हैं, अपने समर्थकों के वोट पड़ें इसके लिए भाजपा पन्ना प्रमुख की भी तैनाती करती है। आपको बता दें पन्ना प्रमुख वे कार्यकर्ता होते हैं जो मतदाताओं को भाजपा के समर्थन में वोट करने से लेकर उनके द्वारा वोट किया गया अथवा नहीं यह सुनिश्चित करने तक की जिम्मेदारी संभालते हैं। पन्ना शब्द से आशय वोटर लिस्ट के पन्ने से है सामान्यत: वोटर लिस्ट के एक पन्ने पर 30 नाम होते हैं इन्हीं की जिम्मेदारी उस पन्ना प्रमुख को सौंपी जाते हैं।
कहा जा सकता है सर्वाधिक जमीन से जुड़े कार्यकर्ता यह पन्ना प्रमुख ही होते हैं और इन्हीं पन्ना प्रमुखों का सम्मेलन 11 सितंबर को भाजपा करने जा रही है। जमीन से जुड़े इन कार्यकर्ताओं को पार्टी के शीर्ष पदाधिकारी अध्यक्ष पद बैठे जेपी नड्डा सम्बोधित करेंगे। इस सम्मेलन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तथा दोनों उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा और केशव प्रसाद मौर्य भी शामिल हो सकते हैं।
बताया जा रहा है कि पार्टी का लक्ष्य 4 करोड़ से ज्यादा वोट हासिल करना है, पिछले चुनाव में भाजपा को 3.44 करोड़ वोट प्राप्त हुए थे। जानकारों के अनुसार पार्टी ने यह रणनीति बनाई है कि जितने उसके सक्रिय सदस्य हैं, पहले उन तक पहुंचा जाए, आपको बता दें भाजपा के उत्तर प्रदेश में इस समय दो करोड़ सक्रिय सदस्य हैं। पार्टी का मानना है कि अगर इन सभी दो करोड़ सदस्यों को सक्रिय कर उन्हें उनकी योग्यता के अनुसार पन्ना प्रमुख से लेकर ऊपर तक के पदों की महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंप दी जाए तो चार करोड़ वोट हासिल करने का लक्ष्य मुश्किल नहीं है। पार्टी के नेताओं का कहना है कि हम सभी वर्गों को साथ में लेकर चल रहे हैं, हम प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन करके सिर्फ ब्राह्मणों को ही नहीं जोड़ रहे हैं हम सभी वर्गों में पार्टी की विचारधारा की स्वीकार्यता बढ़ाना चाहते हैं।